उसका यूँ अचानक चले जाना, बेवजह है क्या ? कभी बात करना, कभी चुप हो जाना, बेवजह है क्या ? गौरतलब है कि वो थक गया है, तुझसे तेरी बातों से उसका यूँ नज़रें चुराना, बेवजह है क्या ?
तुझे समझ नहीं आता? ये हरकत क्या है सब साफ़ ही है, तो ये गफलत क्या है ? इतनी देर में तो परिंदा भी होश संभाल लेता है हर बार उसका नया बहाना, बेवजह है क्या ?
जो इश्क़ करते हैं, वो इसका कलमा भी पढ़ते हैं आब-ए-मोहब्बत में वज़ू भी करते हैं तुझे तोहफे में क्या मिला – बस रुसवाई ? उसका तुझको ये नज़राना, बेवजह है क्या ?
गौरतलब है कि वो थक गया है, तुझसे तेरी बातों से उसका यूँ नज़रें चुराना, बेवजह है क्या ?